सऊदी अरब की सरकारी शरीयत इमाम हंबल के धार्मिक क़ानूनों पर आधारित है। उनके अनुयायियों का कहना है कि उनका बताया हुआ तरीक़ा हदीसों के अधिक करीब है।
इन चारों इमामों को मानने वाले मुसलमानों का ये मानना है कि शरीयत का पालन करने के लिए अपने अपने इमाम का अनुसरण करना ज़रूरी है।इसी समुदाय को सल्फ़ी और अहले-हदीस और वहाबी आदि के नाम से जाना जाता है। यह संप्रदाय चारों इमामों के ज्ञान, उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य की क़द्र करता है।
लेकिन उसका कहना है कि इन इमामों में से किसी एक का अनुसरण अनिवार्य नहीं है। उनकी जो बातें क़ुरान और हदीस के अनुसार हैं उस पर अमल तो सही है लेकिन किसी भी विवादास्पद चीज़ में अंतिम फ़ैसला क़ुरान और हदीस का मानना चाहिए।सल्फ़ी समूह का कहना है कि वह ऐसे इस्लाम का प्रचार चाहता है जो पैग़म्बर
सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक क़ानून पर अमल करते हैं जबकि सांस्कृतिक तौर पर दाऊदी बोहरा यानी शिया समुदाय के क़रीब हैं।
इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी का ही एक अवतार थे।
उनके मुताबिक़ वे खुद कोई नई शरीयत नहीं लाए बल्कि पैग़म्बर
बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता। हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है।
पाकिस्तान में तो आधिकारिक तौर पर अहमदियों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया है।उनका मानना है कि पैग़म्बर
उनका विश्वास है कि जिस तरह अल्लाह ने
उनके पहले इमाम हज़रत अली हैं और अंतिम यानी बारहवें इमाम ज़माना यानी इमाम महदी हैं। वो अल्लाह, क़ुरान और हदीस को मानते हैं, लेकिन केवल उन्हीं हदीसों को सही मानते हैं जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं।
क़ुरान के बाद अली के उपदेश पर आधारित किताब नहजुल बलाग़ा और अलकाफ़ि भी उनकी महत्वपूर्ण धार्मिक पुस्तक हैं। यह संप्रदाय इस्लामिक धार्मिक क़ानून के मुताबिक़ जाफ़रिया में विश्वास रखता है। ईरान, इराक़, भारत और पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में इस्ना अशरी शिया समुदाय का दबदबा है।उनके इस्लामिक़ क़ानून ज़ैद बिन अली की एक किताब ‘मजमऊल फ़िक़ह’ से लिए गए हैं। मध्य पूर्व के यमन में रहने वाले हौसी ज़ैदिया समुदाय के मुसलमान हैं।
इस्ना अशरी समूह ने उनके दूसरे बेटे मूसा काज़िम को इमाम माना और यहीं से दो समूह बन गए। इस तरह इस्माइलियों ने अपना सातवां इमाम इस्माइल बिन जाफ़र को माना। उनकी फ़िक़ह और कुछ मान्यताएं भी इस्ना अशरी शियों से कुछ अलग है।
उनके अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे। जिसके बाद आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा है। इन्हें दाई कहा जाता है और इस तुलना से 52वें दाई सैय्यदना बुरहानुद्दीन रब्बानी थे। 2014 में रब्बानी के निधन के बाद से उनके दो बेटों में उत्तराधिकार का झगड़ा हो गया और अब मामला अदालत में है।
बोहरा भारत के पश्चिमी क्षेत्र ख़ासकर गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं । जबकि पाकिस्तान और यमन में भी ये मौजूद हैं। यह एक सफल व्यापारी समुदाय है जिसका एक धड़ा सुन्नी भी है।ज़्यादातर खोजा इस्माइली शिया के धार्मिक क़ानून का पालन करते हैं लेकिन एक बड़ी संख्या में खोजा इस्ना अशरी शियों की भी है। लेकिन कुछ खोजे सुन्नी इस्लाम को भी मानते हैं। इस समुदाय का बड़ा वर्ग गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है। पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी ये बसे हुए हैं।
इस समुदाय का मानना है कि अली वास्तव में भगवान के अवतार के रूप में दुनिया में आए थे। उनकी फ़िक़ह इस्ना अशरी में है लेकिन विश्वासों में मतभेद है। नुसैरी पुर्नजन्म में भी विश्वास रखते हैं और कुछ ईसाइयों की रस्में भी उनके धर्म का हिस्सा हैं।
इन सबके अलावा भी इस्लाम में कई छोटे छोटे पंथ पाए जाते हैं।यह दुनिया, सारा ब्रहमाण्ड अल्लाह सुब्हान व तआला का बनाया हुआ है। हम सब, चरिंद परिंद सब उसी अल्लाह के द्वारा बनाए गए हैं। सारे इंसान, वह किसी भी धर्म या जाति का हो सब को अल्लाह ही ने बनाया है और वह ही सब का निगेहबान है।
अल्लाह ने समय समय पर, हम इंसानों में ही अपना सन्देश वाहक (पैग़ंबर, नबी) भेजा और उन पर, उस क़ौम के लिए किताबें भेजी। और अंतिम किताब हम सब के अंतिम नबी और अल्लाह के रसूल प्यारे मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम पर, समय समय पर आयतों में, अपने दूत (फ़रिश्ते) हज़रत जिब्राईल अलैहिस सलाम द्वारा भेजी। अल्लाह ने क़ुरआन में फ़रमाया –और (ऎ रसूल मुहम्मद स.) हमने आपको सारी दुनिया जहान के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बन कर भेजा। (सूरह अल अंबिया 21:107)
यानि मुहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम, सारी इंसानियत, सारे जहान के लिए रहमत बना कर भेजे गए, चाहे वह हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, ईसाई हो, दलित हो, यहूदी हो, सब के लिए। अल्लाह ने क़ुरआन सारे इंसानों के लिए नाज़िल किया है। सिर्फ मुसलमानो के लिए नहीं।
अब बात आ जाती है फ़िरक़ों पर। कम से कम निम्नलिखित स्थानों पर क़ुरआन में
अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि –अल्लाह तआला ने कहीं भी क़ुरआन में नहीं कहा कि अपने को गिरोहों या फ़िरक़ों में बाँटो बल्कि –अपने को मुस्लिम कहो
(सूरह अल बक़रह 2:132), (सूरह आलि इमरान 3:64), (सूरह आलि इमरान 3:67), (सूरह आलि इमरान 3:84), (सूरह अल अंबिया 21:108), (सूरह अल हज 22:78), (सूरह अल कसस् 28:53), (सूरह अनकबूत 29:46), (सूरह अज़ जुमर 39:12)
जिन लोगों ने अपने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और स्वयं गिरोहों में बँट गए, तुम्हारा उनसे कोई संबंध नहीं । उनका मामला तो बस अल्लाह के हवाले है । फिर वह उन्हें बता देगा, जो कुछ वे किया करते थे। (सूरह अनआम 6:159)
मैं अपने ग़ैर मुस्लिम भाइयों से कहना चाहूंगा के ईश्वर ने हम इंसानों को एक परीक्षा के लिए भेजा है और हम सब को मरना है और ईश्वर के पास जाना है। चूंकि हम सब इंसान हैं तो हम सब का दाइत्व है की हम सब मुहब्बत और भाईचारे के साथ एक दूसरे की मदद करें। अपने धर्मग्रन्थ को पढ़ें, समझे और उस पर अमल करें क्योंकि कोई भी धर्म नफ़रत की शिक्षा नहीं देता। तुल्यनात्मक धर्म का अध्धयन करें। इससे एक दूसरे को समझने में आसानी होगी और एक दूसरे में मुहब्बत बढ़ेगी।
मैं अपने मुस्लिम नौजवान भाइयों से गुज़ारिश करूँगा की क़ुरआन हिदायत नामा है उसको समझ कर पढ़ें और अमल करें और अल्लाह की हिदायत के मुताबिक अपने को मुस्लिम कहें।
अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि –और तुम सब के सब (मिलकर) अल्लाह की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे के) फूट ना डालो। (सूरह आलि इमरान 3:103)
अल्लाह तआला हम सब को कहने सुनने ज़्यादा अमल करने की तौफ़ीक़ दे। आमीन।
जेया उस शम्स