हमारे सामने वाज़ेह तोर पर कुरान और हदीस के ये हवाले है |

अल्लाह फ़रमाता हैं – कहो भला बताओ तो सही अगर अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो जिनको तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो क्या वो उसकी(अल्लाह) भेजी हुई परेशानी को दूर कर सकते हैं| (सूरह ज़ुमर 39/38)

ये आयत उन तमाम लोगो के लिये एक चैलेंज हैं जो झाड़-फ़ूंक, तावीज़-गन्डे करते और कराते है उनको अल्लाह की तरफ़ से एक करारा जवाब हैं के अल्लाह के सिवा कोई परेशानी से निजात नही दे सकता चाहे वो किसी भी तरह की हो|

हज़रत उकबा बिन आमिर रज़ि0 से रिवायत हैं कि – नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – जो तावीज़ लटकाये अल्लाह उसकी मुराद न पूरी करे और जो कौड़ी लटकाये अल्लाह उसको सुख और आराम न दे| (हाकिम)
इसके अलावा एक और रिवायत हैं के
मुसनद अहमद जिसने ताविज़ लटकाया उसने शिर्क किया| (अहमद)

उर्दू मे तावीज़ उसे कहते हैं जो बांधा या लटकाया जाये ताकि बीमारी व आसेबी और बुरी नज़र से बचा रहे या खैर और बरकत को हासिल करना होता हैं अरबी मे इसे तमीमा कहते हैं| इसके अलावा अरबी मे तावीज़ या तअव्वुज़ का मतलब पनाह चाहना होता हैं| कुरान और हदीस मे तावीज़ के जो मायने आये हैं इसका मतलब पनाह चाहने के हैं|

हज़रत अबू बशीर अन्सारी रज़ि से रिवायत हैं के वो एक सफ़र मे नबी (ﷺ) के साथ थे| आपने एक शख्स को ये हुक्म देकर भेजा – किसी ऊंट की गर्दन मे तांत का पट्टा या किसी और चीज़ का पट्टा न बाकी रखा जाये बल्कि उसे काट दिया जाये| (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – यकीनन ही झाड़ -फ़ूंक और तावीज़ गन्डा शिर्क हैं| (अहमद, अबू दाऊद)
हज़रत रवैफ़अ बिन साबित रज़ि0 से रिवायत हैं के नबी (ﷺ) फ़रमाया – ऐ रवैफ़अ! शायद तुम्हारी उम्र लम्बी हो तो तुम लोगो को ये खबर दे देना जो दाढ़ी मे गिरह लगाये या तांत लटकाये या लीद या हड्डी से इस्तनिजा करे उससे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम बरी हैं| (निसाई)

इन हदीसो से साबित हैं के तावीज़ चाहे किसी भी तरह का हो उसमे कुरान की आयते हो या न हो उसका लटकाना सरासर हराम और शिर्क हैं| इसके अलावा तावीज़ गन्डे को लटकाने के लिये नबी (ﷺ) की तरफ़ से आम मनाही हैं लिहाज़ा इसके शिर्क और हराम होने मे शक की कोई गुन्जाइश नही|

कुछ लोगो का ये गुमान हैं के कुरान की आयतो को लिख कर गले मे बतौर तावीज़ लटकाया जा सकता हैं तो उनको ये पता होना चाहिये की अव्वल तो नबी (ﷺ) ने तावीज़ लटकाने की आम मनाही की हैं अगर कुरान की आयतो को बतौर तावीज़ लटकाना जायज़ होता तो आप (ﷺ) इसका ज़िक्र सहाबा से ज़रूर करते लेकिन अल्लाह के रसूल (ﷺ) की ज़िन्दगी मे ऐसा कभी न कहा के कुरान की आयतो को गले मे तावीज़ बना कर शिफ़ा हासिल करने के लिये लटका लो| दूसरे अमूमन इन्सान कभी नापाकी मे कभी बिना वुज़ु कभी बिना गुस्ल के होता हैं ऐसी सूरत मे कुरान को अगर तावीज़ के तौर पर गले मे लटका लिया जाये तो सिर्फ़ कुरान की बेहुरमती होगी इसके अलावा इस कुरानी तावीज़ के नाम पर आज गलत तरिको से तावीज़ का करोबार गर्म हैं साथ ही इससे अल्लाह से दूरी, ईमान मे कमज़ोरी और बदअकीदे को मज़बूती मिलती हैं लिहाज़ा नबी (ﷺ) का ये कौल के ताविज़ लटकाना शिर्क हैं ये ही मुसल्मान के लिये काफ़ी हैं|

जादू और ज्योतिष
जादू, ज़्योतिष और इन तांत्रिको के सिलसिले मे
अल्लाह का इर्शाद हैं – और वे उस चीज़ के पीछे पड़ गये जिसे शैतान सुलैमान की सल्तनत पर लगा कर पढ़ते थे| हालाँकि सुलैमान ने कुफ़्र नही किया बल्कि ये शैतान थे जिन्होने कुफ़्र किया वे लोगो को जादू सिखाते थे और वे उस चीज़ मे पड़ गये जो बाबिल मे दो फ़रिश्ते हारूत और मारूत पर उतारी गयी, जबकि उनका हाल ये था कि जब भी किसी को अपना यह फ़न(कला) सिखाते तो उससे कह देते कि हम तो आजमाइश के लिये हैं पस तुम मुन्किर न बनो| मगर वे उनसे वह चीज़ सीखते जिससे मर्द और उसकी औरत कि दर्मियान जुदाई डाल दें| हालांकि वे अल्लाह के हुक्म के बिना इससे किसी का कुछ बिगाड़ नही सकते थे और वे ऐसी चीज़ सीखते जो उन्हे नुकसान पहुंचाये और नफ़ा न दे| और वे जानते थे कि जो इस चीज़ का खरीदार हो, आखिरत मे उसका कोई हिस्सा नही| कैसी बुरी चीज़ हैं जिसके बदले उन्होने अपनी जानो को बेच डाला| काश वे इसे समझते और अगर वे मोमिन बनते और तकवा इख्तियार करते तो अल्लाह का बदला उनके लिये बेहतर था, काश वे इसे समझते| (सूरह अल बकरा 2/102, 103)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – सात हलाक करने वाली चीज़ो से बचो|
सहाबा रज़ि0 ने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) वो सात चीज़े क्या हैं? आपने (ﷺ) ने फ़रमाया –
    1. अल्लाह के साथ शिर्क करना,
    2. जादू,
    3. उस जान को बेवजह कत्ल करना जिसे अल्लाह ने हराम किया हैं,
    4. सूद खाना,
    5. यतीम का माल खाना,
    6. जिहाद से फ़रार होना,
    7. भोली भाली पाक दामन मोमिन औरतो पर तोहमत बांधना|
    (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत सफ़िया रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – जो शख्स किसी काहिन के पास जाये और इससे कोई बात पूछे तो इसकी 40 दिन तक नमाज़ कबूल न होगी| (मुस्लिम)
हज़रत अबू मूसा अशअरी रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – तीन आदमी जन्नत मे दाखील न होगे शराबी, रिश्तो को काटन वाला और जादू की तसदीक करने वाला| (इब्ने माजा)

इन आयत और हदीस की रोशनी मे साफ़ ज़ाहिर हैं के जादू, ज्योतिष, मायाजाल, फ़ालगीरी, टोने-टोटके, शगुन और महूरत वगैराह कुफ़्रिया और शिर्किया काम हैं और दीन ए इस्लाम क इससे दूर-दूर तक कोई वास्ता नही बावजूद इसके आज मुसल्मान इस शिर्किया काम मे इस तरह मुलव्विश हैं जैसे ये उनकी ज़ाति ज़रुरियात हो और बिना इसके उनकी परेशानी दूर नही हो सकती|

एक गलत अकीदा
अमूमन जब लोगो को इन तावीज़ गन्डे के शिर्किया काम से रोका जाता हैं तो वो ये जवाब देते हैं के वो ये तावीज़ अच्छे आलिमो से हासिल करते हैं और ये ताविज़ कुरान की आयतो का हैं और कुरान मे तो अल्लाह ने खालिस शिफ़ा रखी है तो इसको क्यो ने ज़रूरत के तौर पर इस्तेमाल किया जायेजबकि इससे फ़ायदा पहुंचता हैं जिस मकसद के लिये ये तावीज़ ली जाती हैं| यहां इस बात की वज़ाहत करना लाज़िम हैं के उल्मा का अमल सही या गलत होने की दलील नही चाहे वो तावीज़ हो य कोई और चीज़ उल्मा के भी अमल और कौल को सबसे पहले कुरान और हदीस की कसौटी पर परखा जायेगा अगर उनका कौल और अमल कुरान और हदीस के मुवाफ़िक हैं तो बेशक उनकी बात काबिले अमल हैं और इस पर अमल करने मे कोई हर्ज़ नही|

इसमे कोई शक नही के यकीनन अल्लाह ने कुरान मे मोमिनो के लिये शिफ़ा रखा हैं लेकिन उस तरह जिस तरह नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने बताया हैं न के अपने हिसाब से जैसे चाहे कुरान की ताविज़ात बना कर लोगो को पहुचा दिया जाये और उनके काम हल हो जाये| जिस तरह दवा मे शिफ़ा हैं मगर जब तक उसको सही डाकटर से बिना मशवरे के इस्तेमाल करने मे नुकसान हैं ठीक इसी तरह नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने कुरान के तावीज़ात बना कर इस्तेमाल करने की कोई तालीम किसी को नही दी बल्कि तावीज़ लटकाने से मना फ़रमाया| लिहाज़ा कुरान को तावीज़ात के तौर पर इस्तेमाल करना सरासर गलत और कुरान की तौहीन हैं| इसके अलावा कुरान की आयतो को तावीज़ात के तौर पर देने वाले अगर हमारे मआशरे मे 1% हैं तो 99% तावीज़ात कुरान की आयतो की तावीज़ के नाम पर जादू, नम्बर,उल्टी-सीधी लकीरो, और न समझ मे आने वाले लिखी गयी चीज़ो पर हैं जो की कुरान की तावीज़ात के नाम पर हर सड़क छाप मौलवी लोगो को शिफ़ा के नाम पर बेच रहे हैं| इन तावीज़ की हकीकत तब खुलती हैं जब इनको खोल कर देख जाता हैं|

जबकि खुद अल्लाह के रसूल (ﷺ) का इर्शाद हैं
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – अल्लाह ने कोई बीमारी ऐसी नही उतारी जिसकी दवा भी न हो| (सहीह बुखारी)

इसके अलावा कुरानी ताविज़ नाम पर ये शिफ़ा बेचने वाले और खरीदने वाले ये भी भूल जाते हैं के कुरानी तावीज़ लटकाने वाला हर इन्सान पाकी और नापाकी दोनो हालत मे तावीज़ को लटकाये रखता हैं| उसए पहने हुये लैट्रीन भी चला जाता हैं उसी हालत मे बीवी से हमबिस्तर भी होता हैं और उसे पहन के सोता भी हैं ये कुरान उसके ऊपर नीचे आती है| बाज़ तावीज़ात तो कमर मे बांधने तक के लिये भी दिये जाते हैं|

तावीज़ गन्डा करने वालो की हकीकत
आज मौजूदा दौर मे इल्म को दुनियावी ऐतबार जो तरक्की का फ़ैज़ और शर्फ़ हासिल हैं वो इससे पहले देखने मे नही आता बावजूद इसके लोग सही तरीके से इलाज का तरीका छोड़ तावीज़ गन्डो की तरफ़ भागते हैं और तो और ये भी नही देखते के तावीज़ गन्डा देने वाले का खुद का दीनी दुनयावी म्यार क्या हैं| ये तावीज़ गन्डा देने वाले अकसर जिन्न और शैतान के ताबेदार होते हैं अनगिनात गन्दे शिर्किया अमल करके ये इन्सान की शकल मे शैतान के ताबेदार जिन्न और शयातीन को खुश करने के वो तमाम गन्दे और शिर्किया काम करते हैं और इसके सहारे जिन्न और श्यातीन से अपने काम करवाते हैं|
अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं – क्या मैं तुम्हे बताऊँ की शैतान किस पर उतरते हैं| वो हर झूठे गुनाह्गार पर उतरतेए हैं| वे कान लगाते हैं उनमे से अकसर झूठे हैं| (सूरह अश शुअरा 26/221-222)
इसके अलावा
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं के कुछ लोगो ने नबी (ﷺ) से काहिनो के बारे मे पूछा तो
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – इसकी कोई बुनियाद नही|
लोगो ने कहा – ऐ अल्लाह के नबी (ﷺ) बाज़ वक्त वो हमे ऐसी बाते बताते हैं जो सही होती हैं|
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – ये कल्मा हक होता हैं| इसे काहिन किसी जिन्न से सुन लेता हैं या वो जिन्न अपने काहिन दोस्त ले कान मे डाल जाता हैं और फ़िर ये काहिन इसमे सौ झूठ मिला कर ब्यान करता हैं| (बुखारी)

इस हदीस से वाज़े हैं के ऐसे अमल की कोई हैसियत नही अल्बत्ता बाज़ शैतान किस्म के लोग जिनके राब्ते मे शैतान जिन्न होते हैं और उसके ज़रिये वो लोगो को उनके बारे मे बताते हैं जैसे किसी इन्सान को कोई परेशानी हो और वो इससे छुटकारा हासिल करने के लिये किसी काहिन के पास जाता हैं तो शैतान जिन्न पहले ही काहिन को उस इन्सान के बारे मे और उसकी परेशानी के बारे मे बता देता| जब काहिन उस इन्सान को उसके आने का सबब और परेशानीयो के बारे मे बताता हैं तो इन्सान उस काहिन को बहुत पहुंचा हुआ समझता हैं और उससे मुतास्सिर होकर उसी का होकर रह जाता हैं हालाकि ज़ाहिरी तौर पर वो इन्सान अपना ईमान और अकीदा खो देता हैं मगर वो यही समझता हैं के ये काहिन खुदा का कोई नुमाइंदा हैं| और इसके ज़रीये उसे शिफ़ा हासिल होगा|

इसके अलावा ये काहिन या जादू करने वाले गैर उल्लाह के नाम पर नज़्रो नियाज़ देने की हिदायत भी करते हैं के फ़ला काम को पूरा करने के लिये फ़लां बाबा के नाम पर मुर्ग और फ़लां मज़ार पर चादर और फ़लां के नाम पर फ़ातिहा दे देना वगैराह| जरूरतमंद इन तावीज़ गन्डा देने वालो के चक्कर मे पड़कर अपने ईमान भी खो बैठता हैं|

अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं – कहो यकीनन ही मेरी नमाज़ और मेरि कुर्बानी, मेरा जीना और मेरा मरना अल्लाह के लिये हैं जो सारी कायनात क रब हैं उसका कोई शरीक नही हैं| (सूरह अनआम6/162)

और
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया –

उस पर लानत हो जो अल्लाह के अलावा किसी और के लिये ज़बीहा करे|

(मुस्लिम)

इसके अलावा इन तावीज़ गन्डा देने वालो मे से कुछ ऐसे भी हैं जो शरीयत से कोसो दूर हैं मसलन 5 वक्त तो दूर इन्हे इन्हें वक्त की नमाज़ पढ़ने का भी शर्फ़ हासील नही, रमज़ान के रोज़े तो दूर इनको कभी नफ़्ली तोज़ा रखने का भी शर्फ़ हासील नही बल्कि इनमे से बाज़ तो ऐसे भी बदकिरदार हैं के ये तावीज़ गन्डे और शिफ़ा के नाम पर औरतो की इज़्ज़तो से भी खेलते हैं| अगर किसी औरत पर जिन्न या आसेबी का असरात हो या न भी हो तो ये उसे जिन्न या आसेबी परेशानी बता कर उस और को बिना तन्हाई मे लिये ईलाज नही करते फ़िर अल्लाह ही बेहतर जाने के ये उस तन्हाई मे क्या गुल किलाते है इनमे जो औरते होशोहवास मे दुरुस्त अगर इनकी करतूतो की कलैइ खोल अपनी इज़्ज़त बचाने मे कामयाब हो गयी तो ठीक वरना अल्लाह ही बेहतर जान सकता हैं के ये ज़लील किसके साथ क्या हरकत कर गुज़रते हैं|

जबकि खुद अल्लाह के रसूल
नबी (ﷺ) का इरशाद हैं – कोई मर्द किसी औरत के साथ तन्हाई मे न रहे, न कोई औरत सफ़र करे य यह की उसके साथ उसका महरम हो| (बुखारी व मुस्लिम)
तावीज़ गन्डे से ईमान की कमज़ोरी
अमूमन तावीज़ गन्डो पर यकीन करने वाले शिर्क जैसे गुनाह को भी तावीज़ गन्डे से शिफ़ा के नाम पर करने मे गुरेज़ नही करते जिससे इन्सान का ईमान जाता रहता हैं और उसए पता तक नही चलता के वो शिर्क मे मुब्तला हैं| साथ ही इसका इस्तेमाल करने वाल ज़रूरतमंद का अल्लाह पर यकीन कमज़ोर पड़ जाता हैं और वो ये समझता हैं के उसके हाजत सिर्फ़ तावीज़ गन्डे से ही पूरी होगी जबकी तमाम जहांन के लोगो की हाजतो औ ज़रूरत को पूरा करने वाली ज़ात सिर्फ़ अल्लाह ही की हैं| साथ ही लोग ये समझते हैं की उनकी तकदीर तावीज़ गन्डे के इस्तेमाल से बदल जायेगी जबकी ईमान के तकाज़े मे ये भी शामील हैं के मुसलमान अच्छी और बुरी तकदीर पर भी ईमान लाये तब ही वो मुसलमान बन सकता हैं| अमूमन इसका इस्तेमाल करने वालो का ईमान इतना कमज़ोर हो जाता हैं के हर मुसीबत को वो जिन्न या आसेबी आफ़त समझते है और उनके इस कमज़ोर ईमान के सबब तावीज़ गन्डे देने वाले उनसे मनचाही कीमते वसूलते हैं|
शिफ़ा देने वाली ज़ात सिर्फ़ अल्लाह की हैं|
किसी भी मर्ज़ के इलाज से पहले इन्सान को ये ईमान रखना चाहिये के शिफ़ा देने वाली ज़ात सिर्फ़ अल्लाह की हैं| नफ़ा नुकसान का मालिक सिर्फ़ अल्लाह हैं अगर वो शिफ़ा देना चाहे तो शिफ़ा दे और न चाहे तो न दे| बीमारी चाहे कैसी भी हो शिफ़ा देने वाली ज़ात सिर्फ़ अल्लाह की हैं|
अल्लाह कुरान मे फ़रमाता हैं – कौन हैं जो बेबस की पुकार सुनता हैं और उसके दुख को दूर करता हैं| (सूरह नमल 27/62) और अगर अल्लाह तुझे कोई दुख पहुंचाये तो उसके सिवा कोई उसे दूर करने वाला नही| और अगर अल्लाह तुझे कोई भलाई पहुंचाये तो वो हर चीज़ पर कादिर हैं| और उसी का ज़ोर हैं अपने बन्दो पर| (सूरह अनआम 6/17) और अल्लाह अगर तुम्हे किसी तकलीफ़ मे पकड़ ले तो उसके सिवा कोई नही जो उसे दूर कर सके| (सूरह यूनुस 10/107) और जब मैं बीमार हो जाता हूं तो वही मुझे शिफ़ा देता हैं| (सूरह शूअरा 26/80)

इसके अलावा
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि0 फ़रमाते हैं –
एक दिन मैं नबी (ﷺ) के साथ था| आप (ﷺ) मुझसे फ़रमाया – ऐ लड़के! मैं तुम्हे कुछ बताता हूं| तुम अल्लाह के हुक्म की पाबन्दी हिफ़ाज़त करो अल्लाह तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा| तुम अल्लाह के हुक्म की हिफ़ाज़त करोगे तो तुम उसे अपने सामने पाओगे| जब तुम मांगो अल्लाह ही से मांगो और जब तुम मदद चाहो तो अल्लाह हि से मदद चाहो और याद रखो कि पूरे लोग मिलकर तुम को कुछ फ़ायदा पहुंचाना चाहे तो कुछ भी फ़ायदा न पहुंचा सकेंगे मगर वही जो अल्लाह ने तुम्हारे लिये लिख दिया हैं और अगर सब लोग मिलकर तुम को कुछ नुकसान पहुंचाना चाहे तो कोई नुकसान नही पहुंचा सकेंगे मगर वही जो अल्लाह ने तुम्हारे लिये लिख दिया हैं| कलम उठा लिये गये है और कागज़ खुश्क हो गये हैं| (तिर्मिज़ी)
इलाज का शरई तरीका
इस्लाम एक मुकम्मल दीन हैं| इसके अन्दर इन्सान की तमाम परेशानी का हल मौजूद हैं| इस्लाम ने इन्सान को किसी भी जगह अंधा नही छो।दा बल्कि पेशाब और पाखाना का भी एक तरीका बताया| लिहाज़ा बीमारियो के बरे मे भी इस्लाम ने पूरी तरह से रहनुमाई करी हैं| इस्लाम न अलग-अलग तरह की बीमारियो के इलाज के लिये दो तरिके ब्यान किये हैं
  1. दवाओ के ज़रिये
  2. ज़िक्र और दुआ के ज़रिये
दवाओ के ज़रिये इलाज
नबी (ﷺ) की ये सुन्नत थी के आप खुद अपना इलाज करते और दूसरो को इलाज के लिये नसीहत करते|
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – अल्लाह ने दुनिया मे जब कोई बीमारी पैदा की तो उसका इलाज और दवा भी साथ ही साथ उतारी| (बुखारी)
हज़रत जाबिर रज़ि0 से रिवायत हैं की -
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – हर बीमारी के लिये दवा मौजूद हैं जब दवा का इस्तेमाल बीमारी के मुताबिक किया जाता हैं तो अल्लाह के हुक्म से शिफ़ा हो जाती हैं| (मुस्लिम)
हज़रत उसामा बिन शरीक रज़ि0 से रिवायत हैं –
मैं नबी (ﷺ) की खिदमत मे हाज़िर था कि कुछ गांव के रहने वाले लोग हाज़िर हुये और
आप (ﷺ) से पूछा – ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) क्या हम दवा करे?
आप (ﷺ) ने फ़रमाया – ऐ अल्लाह के बन्दो! दवा करो क्योकि अल्लाह ने जो बीमारी दुनिया मे पैदा की उसकी शिफ़ा और दवा भी पैदा की हैं केवल एक बीमारी की कोई दवा नही|
लोगो ने पूछा – वह कौन सी बीमारी?
आपने (ﷺ) फ़रमाया – बुढ़ापा| (इब्ने माजा)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि0 से रिवायत हैं कि
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – कलौंजी मे हर बीमारी की शिफ़ा हैं मौत के अलावा| (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं की
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – बुखार जहन्नम की सांस का असर हैं लिहाज़ा उसे पानी से ठण्डा करो| (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ि0 से रिवायत हैं के –
नबी (ﷺ) ने फ़रमाया – बुखार जहन्नम की सांस का असर हैं लिहाज़ा उसे पानी से ठण्डा करो| (बुखारी व मुस्लिम)
एक शख्स (ﷺ) की खिदमत मे हाज़िर हुआ
और कहा – मेरे भाई को दस्त आ रहे हैं|
आपने फ़रमाया – उसे शहद पिलाओ|
फिर दोबारा वह शख्स हाज़िर हुआ और कहा – मैने शहद पिलाया उससे दस्त और बढ़ गये|
आप इसे तीन बार यही हुक्म देते रहे की शहद पिलाओ| फ़िर चौथी बार वह शख्स हाज़िर हुआ तो
आपने फ़रमाया – उसे शहद पिलाओ|
उसने कहा की दस्त बढ़ते जा रहे हैं तो अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फ़रमाया – अल्लाह का कौल सच्चा हैं और तुम्हारे भाई का पेट झूठा हैं| उसने उसे शहद पिलाया और वो ठीक हो गया| (बुखारी व मुस्लिम)

इस तरह नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने अलग-अलग बीमारियो के लिये अलग अलग तरीके से इलाज बताया हैं| इस बारे मे अल्लामा इब्ने कय्युम ने जादुल मुआद मे तिब्बे नबवी के हवाले से बड़ी भरपूर बहस की हैं| उर्दू मे तिब्बे नबवी के नाम से इसका तर्जुमा छप चुका हैं| लिहाज़ा इन्सान को चाहिये के बीमारी मे अच्छे किस्म के हकीमो से सलाह करे और अल्लाह की ज़ात से शिफ़ा की उम्मीद करे|

ज़िक्र व दुआ के ज़रिये
इलाज के लिये जो दूसरा तरीका इस्लाम ने बताया हैं वह कुरानी आयतो और ज़िक्र से झाड़ फ़ूंक के ज़रिये हैं|
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं –
नबी (ﷺ) ने उनके घर मे एक बच्ची देखा जिसका चेहरा ज़र्द(पीला) पड़ चुका था तो आपने फ़रमाया – उसे बुरी नज़र लगी हैं उसकी झाड़-फ़ूंक करो| (बुखारी व मुस्लिम)

हज़रत अनस रज़ि0 से रिवायत हैं के –
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने बुरी नज़र, ज़हरीले जानवर के काटने और डंक मारने, और पहलू की फ़ुंसियो के इलाज मे झाड़-फ़ूंक करने की इजाज़त दी हैं| (मुस्लिम)
हज़रत आयशा रज़ि0 से रिवायत हैं –
नबी (ﷺ) जब बीमार होते तो सूरह नास और सूर ह्फ़लक पढ़कर अपने ऊपर दम करते और जब आपकी बीमारी बढ़ गयी तब मैं आप पर दम करके पढ़ती थी और आपके पाक जिस्म पर हाथ फ़ेरती ताकि आपको हाथो की बरकत हासिल हो| (बुखारी व मुस्लिम)
हज़रत उस्मान बिन अबी आस रज़ि0 से रिवायत हैं –
की उन्होने नबी (ﷺ) से अपने जिस्म मे दर्द कि हरारत की तो आपने फ़रमाया – तुम अपना हाथ उस जगह रखो जहा दर्द होता हैं और तीन बार बिस्मिल्लाह कहो और सात बार यह दुआ पढ़ो – आऊज़ो बिल्लाही व कुदरती मिन शर्रीमा उजिदू व उहाजिरु| (मुस्लिम)

इन हदीसो की रोशनी मे साफ़ ज़ाहिर हैं के कुरान की आयतो और ज़िक्र के ज़रिये झाड़-फ़ूंक जायज़ हैं| इसकी सही सूरत ये के बीमार खुद इसको पढ़े या अपने घर के लोगो से पढ़वाये या किसी मुत्तकी परहेज़गार जो शरिअत का पाबन्द हो उससे ये झाड़-फ़ूंक करवाए|

झाड़-फ़ूंक के बारे मे उल्मा ने कुछ उसूल ब्यान करे हैं जैसे –
अल्लामा खत्ताबी रह0 फ़रमाते हैं – नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने झाड़-फ़ूंक किया हैं और आपको झाड़-फ़ूंक किया गया हैं| आपने इसका हुक्म फ़रमाया हैं और इजाज़त दी हैं| लिहाज़ा कुरानी आयतो से झाड़-फ़ूंक जायज़ हैं और मनाही उस झाड़-फ़ूंक मे हैं जो अरबी ज़ुबान मे न हो क्योकि खतरा हैं के वो कुफ़्रिया और शिर्किया जुमलो पर हो| (तैसीरुल अज़िज़ुल हमीद पेज 165)
अल्लामा सिवती रह0 फ़रमाते हैं के –
उल्मा तिन शर्तो के साथ झाड़-फ़ूंक के जायज़ होने पर मुत्तफ़िक हैं | 1. कुरानी आयतो या अल्लाह के पाक नामो से किया जाये
2. अरबी ज़ुबान मे हो जिसका मतलब पता हो और साफ़ हो|
3. यह अकीदा हो कि झाड़-फ़ूंक अपनी जगह हैं बल्कि इसके ज़रिये शिफ़ा देने वाली ज़ात अल्लाह ही की हैं और जो अल्लाह ने लिख दिया वही होता हैं|
(तैसीरुल अज़िज़ुल हमीद पेज 167)

लिहाज़ा इन शर्तो को ध्यान मे रखते हुये झाड़-फ़ूंक के ज़रिये इलाज करना जायज़ हैं| लेकिन झाड़-फ़ूंक के नाम पर खाने-पीने की चीज़ो पर दम करना और उसे बीमार को खिलाना नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम से साबित नही और इससे बचना चाहिये|

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि0 से रिवायत हैं के
नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने बर्तन मे सांस लेने या फ़ूंक मारने से मना किया हैं| (इब्ने माजा)